प्रभु के स्मरण में लीन परिवार निर्दोष पाया गया, गजदल क्रोधित पाया गया, जो परिवार के रक्षण में लगा हुआ है। और पारिशेष न्याय से बचा हुआ दल सदोष पाया गया जो सबके भक्षण में लगा है। फिर क्या पूछना, प्रधान सर्प ने कहा सबसे – इनकी उदण्डता दूर हो इस हेतु इन्हें शह (सबक) देना है किसी को भी काटना नहीं, मारना नहीं क्योंकि - हम भी मानते हैं कि-
"दण्डों में अन्तिम दण्ड
प्राणदण्ड होता है।
प्राणदण्ड से
औरों को तो शिक्षा मिलती है
परन्तु
जिसे दण्ड दिया जा रहा है
उसकी उन्नति का अवसर ही समाप्त।" (पृ. 431)
अन्तिम दण्ड प्राणदण्ड होते हुए भी जिसे दण्ड दिया जा रहा है, उसे देखकर दूसरों को भले ही कुछ सीख मिल जावे किन्तु उसके लिए तो सुधार के सारे रास्ते ही बन्द हो जाते हैं। दण्ड संहिता माने या ना माने किन्तु क्रूर अपराधी को भी क्रूरता से दण्डित करना न्याय-मार्ग से दूर जाना, एक प्रकार का अपराध ही है।
चारों ओर जहाँ देखो वही अनगिन नाग-नागिन देख ऐसा लग रहा है मानो नागेन्द्र ही पाताल से परिवार सहित धरती पर आया हो, पतितों-दुखियों का सहयोग करने। यह पहली बार घटित घटना है कि आतंकवाद स्वयं भयभीत हो पीछे भागने लगा, कीचड़ में फँसे हाथियों के समान उसका बल निष्क्रिय हुआ, सागर की ओर बहती नदी के समान चुपचाप आतंकवाद सघन वन में जा छुपा।
संहार की बात मत करो अपितु संघर्ष करते चलो, हार की बात मत करो उत्कर्ष करते चलो अर्थात् दूसरों को नीचा दिखाने, ठगने की मत सोचो किन्तु अपने जीवन को श्रेष्ठ-अच्छा बनाने का प्रयास करो और फिर टूटी हुई घायल डाल पर रसदार फल लगते नहीं, लग भी जाएँ तो पकते नहीं यदि काल पाकर पक भी जाएँ तो खाने वाले को उस रसदार फल का कुछ स्वाद नहीं आता कारण कि शुरू से ही विपरीत, विकृत परिस्थिति जो रही उसकी।
1. दयालीन - जिनका मन दया के कार्यों में लगा रहता है।
2. पारिशेष न्याय - शेष बचा हुआ ग्रहण करने वाली व्यवस्था।