‘समन्तभद्र की भद्रता' ग्रन्थ आचार्य समन्तभद्र द्वारा विरचित 'स्वयंभू स्तोत्र' का हिन्दी अनुवाद है। इस रचना की पृष्ठभूमि यह है कि सन् १९७७ में आचार्यश्री जब सिद्धक्षेत्र कुण्डलगिरि से पटेरा, दमोह (म० प्र०) पधारे तो वहाँ की जनता ने उनका श्रद्धा भक्तिपर्वक भव्य स्वागत किया। प्रतिदिन की भाँति जब एक दिन आचार्यश्री ने अत्यन्त भक्ति-प्रवणता के साथ प्रातः सस्वर ‘स्वयंभू स्तोत्र का पाठ किया, जिसे सुनकर सागर से दर्शनार्थ पहुँचे श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये। उन्होंने उनके चरणों में निवेदन किया कि अधिकांश लोग संस्कृत नहीं जानते, अतः आप इसका पद्यानुवाद कर दीजिए, ताकि उसे कण्ठस्थ कर सकें और सस्वर पढ़ भी सकें। सागर की जैन समाज की यह प्रार्थना स्वीकृत तो हुई, परन्तु देर से, सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरि, छतरपुर (म० प्र०) पर इसे प्रारम्भ किया और २९ मार्च, १९८० को महावीर जयन्ती के पुण्य अवसर पर इसे समाप्त किया और नाम रखा गया ‘समन्तभद्र की भद्रता'।