बन्धु-वर्ग तो खेल-कूद में भी विजयी तव मस्त रहा।
अजेय-बनकर अमेय बल पा मुदित मुखी बन स्वस्थ रहा ॥
यह सब प्रभाव मात्र आपका दिवि से आ जब जन्म लिया।
अजित'' नाम तब सार्थक रख तव परिजन सार्थक जन्म किया ॥१॥
अजेय शासन के शासक थे अनेकान्त के पोषक थे।
भविजन हित-सत पथदर्शक थे अजित-नाथ जग तोषक थे।
वांछित-शिव-सुख, मंगल पाने मुमुक्षु जन अविराम यहाँ।
आज! अभी भी लेते जिन का परम सुपावन नाम महा ॥२॥
भविजन का सब पाप मिटे बस यही भाव ले उदित हुए।
मुनि नायक प्रभु समुचित बल ले घाति-घात कर मुदित हुए।
मेघ-घटा बिन नभ-मंडल में दिनकर जिस विध पूर्ण उगा।
कमल-दलों को खुला-खिलाता, अन्धकार को पूर्ण भगा ॥३॥
चन्दन-सम शीतल जल से जो भरा लबालब लहराता।
तपन ताप से तपा मत्त गज उस सर में ज्यों सुख पाता ॥
धर्म-तीर्थ तव परम-श्रेष्ठ शुचि जिसमें अवगाहन करते।
काम-दाह से दग्ध दुखी जन पल में सुख पावन वरते ॥४॥
शत्रु मित्र में समता धरकर परम ब्रह्म में रमण किया।
आत्म-ज्ञान-मय सुधा-पान कर कषाय-मल का वमन किया ॥
आतम-जेता अजित-नाथ हो चेतन-श्री का वरण किया।
जिन-पद-संपद-प्रदान कर दो तुम पद में यह नमन किया ॥५॥
(दोहा)
जित इन्द्रिय जित मद बने, जित भव विजित कषाय।
अजित-नाथ को नित नर्मू, अर्जित दुरित पलाय ॥१॥
कोंपल पल-पल को पले, वन में ऋतु-पति आय।
पुलकित मम जीवन-लता, मन में जिन पद पाय ॥२॥