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करें "दस लक्षण पर्व का आगाज नृत्य प्रस्तुति के साथ" ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • (२२) द्विविध धर्म सूत्र

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    सन्मार्ग हैं श्रमण श्रावक भेद से दो, उन्मार्ग शेष, उनको तज शीघ्र से दो।

    मृत्युंजयी अजर हैं अज हैं बली हैं, ऐसा सदा कह रहे ‘जिन केवली' हैं ॥२९६॥

     

    ‘स्वाध्याय ध्यान' यति धर्म प्रधान जानो, भाई बिना न इनके यति को न मानो।

    है धर्म, श्रावक करे नित दान पूजा, ऐसा करें न, वह श्रावक है न दूजा ॥२९७॥

     

    होता सुशोभित पदों अपने गुणों से, साधु सुसंस्तुत वही सब श्रावकों से।

    पै साधु हो यदि परिग्रह भार धारे, सागार श्रेष्ठ उनसे गृहधर्म पा रे ॥२९८॥

     

    कोई प्रलोभवश साधु बना हुआ हो, पै शक्तिहीन व्रत पालन में रहा हो।

    तो श्रावकाचरण ही करता कराता, ऐसा जिनेश मत है हमको बताता ॥२९९॥

     

    श्री श्रावकाचरण में व्रत पंच होते, हैं सात शील व्रत ये विधि पंक धोते।

    जो एक या इन व्रतों सबको निभाता, है 'भक्त श्रावक' वही जग में कहाता ॥३००॥


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