गुरु-स्तुति
हे नेमिचन्द्र! मुनि कौमुद मोदकारी,
सिद्धान्त पारग विराग चिरागधारी।
दो ज्ञानसागर गुरो! मुझको सुविद्या,
विद्यादिसागर बनँ तज दें अविद्या ॥
भूल क्षम्य हो
लेखक कवि मैं हूँ नहीं मुझमें कुछ नहिं ज्ञान।
त्रुटियाँ होवें यदि यहाँ शोध पढ़ें धीमान ॥
मंगल कामना
चाहो शाश्वत मोक्ष को, चाहो केवलज्ञान।
संगत्याग कर नित करो, निज का केवल ध्यान ॥
रवि से बढ़कर तेज है, शशि से बढ़कर ज्योत।
झाँक देख निज में जरा, सुख का खुलता स्रोत ॥
पर में सुख कहिं है नहीं, खुद ही सुख की खान।
निजी नाभि में गंध है, मृग भटके बिन ज्ञान ॥
आत्म कथा तज क्यों करो,नित विकथा निस्सार।
पय तज, पीते विष भला, क्यों हो निज उद्धार ॥
प्रतिदिन सविनय चाव से, इसको पढ़ तू! भव्य।
सुर सुख शिव सुख नियम से, पाते अक्षय द्रव्य ॥
समय एवं स्थान परिचय
देव गगन गति गंध की, तिथि श्रुत पंचमि सार।
ग्राम अभाना में लिखा, ध्येय मिले भव पार॥