आप्तमीमांसा
(२६ सितम्बर,१९८३)
आचार्य समन्तभद्रस्वामी द्वारा संस्कृत भाषाबद्ध आप्तमीमांसा' (देवागमस्तोत्रम्) का आचार्यश्री द्वारा पद्यबद्ध यह भाषान्तरण है। उनकी इस कृति में दस परिच्छेद हैं, जिनमें ११४ कारिकाएँ हैं। इसी आप्त-मीमांसा का ज्ञानोदय छन्द' में पद्यानुवाद आचार्यश्री ने किया, पद्यानुवाद के प्रारम्भ में सात दोहों में मंगलाचरण है। मंगलाचरण हमें उनके गुणोदय आदि ग्रन्थों में भी उपलब्ध होता है। अन्तर केवल इतना है कि अन्तिम दोहे में ग्रन्थ का नाम बदल दिया गया है। अन्त में पद्यानुवाद-प्रशस्ति है, जिसके एक दोहे में शोध कर पढ़ने का परामर्श है और दूसरे में इसकी रचना का काल है
निधि-नभ-नगपति-नयन का सुगन्ध-दशमी योग।
लिखा ईसरी में पढ़ो, बनता शुचि उपयोग॥
अर्थात् वीरनिर्वाण संवत् २५०९ की भाद्रपद शुक्ला दशमी, सुगन्धदशमी, विक्रम संवत् २०४०, शुक्रवार, २६ सितम्बर, १९८३ को सिद्धक्षेत्र तीर्थराज सम्मेदशिखर के पादमूल में स्थित ईसरी नगर गिरीडीह, बिहार प्रान्त में इसे लिखा, इसके पढ़ने से शुद्धोपयोग बनेगा।
Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव