कहाँ क्या ? था विगत में
.........ज्ञात नहीं
अनागत की गात भी
........ अज्ञात ही
आगत की बात है
अनुकरण की नहीं
जहाँ तक सत्य की बात है
देश-विदेश में ..... भारत में भी
सत्य का स्वागत है
आबाल वृद्धों, प्रबुद्धों से
किन्तु
खेद इतना ही है
कि
सत्य का यह स्वागत
बहुमत पर
आधारित है |