इस बात को स्वीकारना होगा
कि
आँख के पास
श्रद्धा नहीं होती है क्योंकि
जब कुछ नहीं दिखता एकान्त में
आँखें भय से कंपती हैं,
और!
श्रद्धा!!
अन्धी होती है,
किन्तु
श्रद्धा के पास
उदारतर उर होता है
जिसमें मधुरिम
सुगन्धि होती है
प्रभु का नाम जपती है,
तभी तो सहज रूप से
अज्ञेय किन्तु
श्रद्धेय प्रभु से
सन्धि होती है
श्रद्धा! अन्धी होती है