अन्न पान से
पेट की भूख
जब शान्त होती है
तब जागती है
रसना की भूख,
रस का मूल्यांकन!
नासा सुवास माँगती है
ललित - लावण्य की ओर
आँखें भागतीं हैं,
श्रवणा उतारती
स्वरों की आरती है
मन मस्ताना होता है
सब का कपताना होता है
आविष्कार कपाट का होता है
अन्यथा
फण - कुचली - घायल नागिन - सी
बिल से बाहर
निकलती नहीं हैं
ये इन्द्रिय - नागिन!