क्यों मुग्ध हुआ है शुक्तिका पर शुक्ति का खोल एक बार तो झाँक ले और! आँक ले, भीतर की मुक्तिका पर सदा-सदा के लिए अवश्य मुग्ध होगा! कहाँ भटकता तू बीहड़ जंगल में बाहर नहीं हे सन्त! बसन्त बहार भीतर मंगल में है।