कृपा पालित कपालवाली
अनुभव-भावित भालवाली
ओ! ‘आदिम सत्ता’
कृपा पात्र तो बना ही दिया इसे...
चिर से
युगों-युगों से चुभते थे
जीवन के गहन मूल में
दुखद अभावों के शूल
भावों स्वभावों में
..............ढले,
बदले आज वे
सुखद फूल हो गये।
जीवन - पादप
पतित-पात था
पलित - गात था
कषाय तपन के
तीव्र ताप से
आज.......
सलिल का सिंचन हुआ
शीतल - शीतल
अनिल का संचरण हुआ
सुर - तरु से
हरे - भरे
आमूल - चूल हो गये,
सुरपति - पदवी
भव - भव वैभव पाने
मन की खटिया पर
वयोवृद्धा आशा
जीवित थी आज तक
दिवंगत हुई वह,
अब सब कुछ बस
जीर्ण-शीर्ण तृण सम
धूल हो गये
सब के सब
मन से बहुत दूर
भूल हो गये |