जिस वक्ता में धन - कंचन की आस और पाद - पूजन की प्यास जीवित है, वह जनता का जमघट देख अवसरवादी बनता है आगम के भाल पर घूँघट लाता है कथन का ढंग बदल देता है, जैसे झट से अपना रंग बदल लेता है गिरगिट।