खर-नखरदार
जिसके पंजे हैं
कभी चूहों का
शिकार खेलती है,
कभी प्राण प्यारे
संतान झेलती है,
जिन पंजों में
प्यार पलता है
उन्हीं पंजों में
काल छलता है
ऐसा लगता है
किन्तु पंजे आप
हिंसक हैं, न अहिंसक
प्राण का पलना
काल का छलना
यह अन्तर घटना है
बाहर अभिव्यक्ति है
तरंग पंक्ति है
घटना का घटक
अन्दर बैठा है
अव्यक्त - व्यक्ति है वह,
उसी पर आधारित है यह
वही विश्व को बनाता भुक्ति
वही दिलाता विश्व को मुक्ति
हे! भोक्ता पुरुष !
स्वयं का भोग कब करेगा ?
निश्छल योग कब धरेगा ?