प्रकृति-प्रमदा प्रेम वश पुरुष से लिपटी हरिताभ हँस पड़ी प्रणय-कली महकी गन्ध भरी खुल-खिल पड़ी रक्ताभ लस रही किन्तु ! पुरुष सचेत है वह डूबा नहीं प्रकृति जिसमें डूबी है पुरुष की आँखों में हीराभ - मिश्रित नीलाभ बस रही |