शाश्वत निधि का भास्वत विधि का..... धाम हो राम, अभिराम हो क्यों बना तू! रावण सम आठों याम दीन - हीन पाप - प्रवीण, ‘है’ उसे बस लख जरा बहुत दूर जाकर चेतना में लीन हो सुधा - पीयूष बस! चख जरा।