याचना का चोला पहना यातना का पहना गहना आँगन-आँगन कितने प्राँगण ? घूमा है यह सुख-सा कुछ मिलता आया और मिटता आया सुख की आस अमिट ! आज तक ! अंमित मिला नहीं अमिट मिला नहीं हे! अनन्त सन्त ! अब मोल नहीं अनमोल मिले!