चेतना के भीतरी मध्यभाग में
परम विशुद्ध/सहज
तीन रेखायें
समग्र आत्मप्रदेशों को
अपने प्रभाव से
प्रभावित करती हुई
आपकी कायागत
बाहरी ग्रीवा की शोभा वैभव में
और मंजुता की छटा उत्कीरती
विस्तृत फैलाती
सम्यक दृष्टि
स्थित प्रज्ञा
विरागता के परिवेश में
प्रतिछवि सी
आपके कण्ठप्रदेश पर
केन्द्रीभूत हो
जगमग जगमग जगी हैं...!
फलस्वरूप
आपके कण्ठ को देख
अपने कण्ठ से तुलना कर
स्वयं को अतुल अमूल्य
समझने वाला
दिव्य शंख भी
स्वयं को निर्मूल्य/नगण्य
समझकर
लज्जातिरेक से
लज्जित हो
विकल हो।
सर्वप्रथम चिंता में डूब गया
दिन प्रतिदिन
वह
उस चिंता के कारण
सफेद हुआ...
और अन्त में
ऐसा विचार करता है
कि
संसार को मुख दिखाना
कैसा उचित होगा अब...
मध्य रात्रि में उठकर
अपार जलराशि में जाकर
डूब गया...!
अन्यथा
सागर में उसका
अस्तित्व क्यों...?
हे भगवन् !!...