धनी जनों
धी धनों
औ
तपोधनों
के मुख से
अपनी प्रशंसा के
सरस श्राव्य / श्रुतिमधुर
गीत सुन
हृदय में
गद्गद हो
कभी भूल
स्वप्न में भी
कठपुतली-सा
नर्तक बन
करे न नर्तन
टुन टुन...टुन टुन
यह मेरा
संयमित
नियंत्रित
समाधितंत्रित
भावित मन...
हे! अमन!
हे! चमन!