धवलिमा सी
छवि धारती
मृदुल-मृदुलतम
सकल दलों सहित ।
मम चेतना कुमुदिनी
विकास ह्रास उल्लास में…
आपके
शुभ्र-शुक्ल
अतुलनीय कमनीय
वर्तुलीय
विमल निर्मल
शीतल
मुख मण्डल से
पराजित हुआ
लज्जित हुआ
पूर्ण चन्द्र भी
चूर-चूर हो
अशरण हो
आपके
तारण-तरणों
चरणों में
शरणाभिलाषी
दिन-रात...
सेवारत
नखावलि के मिष !
कारण है !
हे! जगदीश !
सकलज्ञ धीश !