सप्तम पृथ्वी का
रवरव नरक
रसातल से भी नीचे
निगोद के तलातल
पाताल से निकला हुआ
किसी कर्मवश
ऊर्ध्वगम्यमान
दुर्लभतम
जंगमवान हुआ
सुकृत योग
शुभोपयोग
संयमवान हुआ!...
यह यात्री
यात्रातीत होने
भवभीत हो / विनीत हो
एक अदम्य जिज्ञासा के साथ
आप से, धर्मामृत पान करने की
प्रतीक्षा में...
उस तरह
जिस तरह...
अपने पुरुषार्थ के बल पर
क्षार सागर के
अगम / अगाध तल से
ऊपर उठकर
सागर जल के
अग्रभाग पर
आकर!...
अपने को कृतार्थ बनाने
यथार्थ बनाने
सुचिर काल
क्षार जल के सेवन से
फटा हुआ / मुँदा हुआ
मुख खोलकर
वर्षाकालीन
नभ मण्डल में
जल से लबालब भरे
विचरते / सहज डोलते
सभी जलद दलों की
अपेक्षा नहीं करती
केवल!...
स्वाति नक्षत्रीय!...
मेघमाला से
मौन ! किन्तु...
भावविभोर हो
प्रार्थना करती
अपनी कारुणिक आँखों से
पूजा करती
मौलिक मौक्तिक मणियों में
ढलने की प्रकृति वाले
अमृतमय शान्त शीतल
उज्ज्वल जलकणों की
प्रतीक्षा में
वह शुक्तिका...!