युगों-युगों से
जीवन विनाशक सामग्री से
संघर्ष करता हुआ
अपने में निहित
विकास की पूर्ण क्षमता संजोय
अनन्त गुणों का
संरक्षण करता हुआ
आया हूँ
किन्तु आज तक
अशुद्धता का विकास
ह्रास
शुद्धता का विकास
प्रकाश
केवल अनुमान का
विषय रहा.....विश्वास
विचार साकार कहाँ हुए ?
बस! ..... अब निवेदन है
कि या तो इस कंकर
को फोड़-फोड़ कर
पल भर में
कण-कण कर
शून्य में...
.... उछाल
.....समाप्त कर दो
अन्यथा
इसे
सुन्दर सुडौल
शंकर का रूप प्रदान कर
अविलम्ब .... इसमें
अनंत गुणों की
प्राण-प्रतिष्ठा
..... कर दो
हृदय में अपूर्व निष्ठा लिए
यह किन्नर
अकिंचन किंकर
नर्मदा का नरम कंकर
चरणों में
उपस्थित हुआ है
हे विश्व व्याधि के प्रलयंकर।
तीर्थंकर!
शंकर!