मिट्टी की दीपमालिका
जलाते बालक-बालिका
आलोक के लिए
ज्ञात से अज्ञात के लिए
किन्तु अज्ञात का / अननुभूत का / अदृष्ट का
नहीं हुआ संवेदन / अवलोकन
वे सजल-लोचन
करते केवल जल विमोचन...
उपासना के मिष से
वासना का, रागरंगिनी का
उत्कर्षण हा ! दिग्दर्शन...
नहीं......नहीं ..... कभी नहीं...
महावीर से साक्षात्कार...
वे सुंदरतम दर्शन
उषा वेला में
गात्र पर पवित्र
चित्र-विचित्र
पहन कर वस्त्र
सह-कलत्र-पुत्र
युगवीर चरणों में
सबने किया मोदक समर्पण
किन्तु खेद है...
अच्छ स्वच्छ औ’ अतुच्छ
कहाँ बनाया मानस दर्पण ?...
तमो-रजो-गुण तजो
सतो गुण से जिन भजो
तभी मँजो....तभी मँजो
जलाओ हृदय में जन जन दीप
ज्ञानमयी करुणामयी
आलोकित हो / दृष्टिगत हो / ज्ञात हो
ओ सत्ता......जो समीप...।