स्पर्श की स्थूल परिणति से
स्थिति से
औ इति से भी
बहुत दूर
ऊपर उठे
सूक्ष्मता में अवतरण
समावतरण
अपरिचित के परिचय का
अर्घावतरण
मौन एकान्त
विजन में
जाति जरा मरण
आवरण
करते हैं
निरावरण का अनावरण का
वरण
अनुसरण
स्वयं बन कर
शरण
आवरण की शरण का
अपहरण!
अकाय!
असहाय!
इस काय की छुवन में
अब नहीं आ सकते
मत आओ...
कौन कहता कि आओ ?
फिर भी कहाँ बसोगे...?
कहाँ लसोगे...?
अपने लावण्य लेकर
इसी भुवन में ना...!
आनंदित
अभिनंदित
स्वतन्त्र स्वाश्रित
सौम्य सुगन्धित
चन्दन वन में
नन्दन वन में ना...!
हे निरावण!
हे अनावरण !
दुःख निवारण कर दो
अकारण
इसने सावरण का
कर लिया है वरण
भूल से
उतावली के कारण
अनन्तकाल से
सहता आया
जनन जरा मरण
किन्तु अब सुकृत
हुआ है जागरण करके एकीकरण
त्रिकरण
कर रहा मात्र
आपके नामोच्चरण
होने तुम सा...
निरा! निरामय
नीराग...
निरावरण!