अपने सहज शुद्ध
अनंत धर्मों
गुणों के
यथार्थ बोध से
वंचित हो
युगों-युगों से
बिना सुख शांति आनंद
व्यतीत किया है।
अनन्त काल !
यह संसार सकल
त्रस्त है
पीड़ित है
आकुल विकल
कारण ? और है इसमें
हृदय से कहाँ हटाया
विषय राग को
हृदय में कहाँ बिठाया
वीतराग को
जो है
संसार भर में केवल
परम शरण
तारण तरण!