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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अर्पण

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    शशिकला के

    मृदुल कल करों का

    प्रेम क्षेम

    परम प्यार

    पाकर

    विलासिता का

    विकासता का

    सरस पान करती

    शशिकला की सितता को

    अपनी कोमल छवि से

    जयशीला

    कुमुदिनी

    प्रखर प्रचण्ड

    प्रभाकर कर-नखघात से

    खुलकर / खिलकर दिनभर

    विहसनशीला

    अनुपमलीला

    विकरणशीला

    कमलिनी भी

    अकुलाती

    जीवन से हाथ धोकर

    रूप-लावण्य खोकर

    दृष्टि अगोचर

    होकर..

     

    मिट्टी में मिल जाती

    हेमन्तीय

    हिमालय का

    हिममय चूड़ा...!

    छूकर उतरा

    हिम मिश्रित

    समीर-स्पर्श

    पाकर !...

     

    किन्तु

    यह कैसी!...

    अदभुद घटना

    विरोधाभास ?

    कि बाहर भीतर

    शीतल

    होता जा रहा हूँ...

     

    हे शीतल!

    शीतलता की तुलना

    किस विध करूँ ?

    किस शीतलता के साथ ?

    ऐसा शीतल पदार्थ नहीं

    धरती तल पर

    ...जब से आप

    निष्पाप निस्ताप

    कृपाकर!

    कर कृपा  

    मुझ पर!...

    मम मानस-पद्मिनी पर

    जो थी

    चिरकाल से

    कुड्मलित

    निमीलित

    उदासीन

    हुए हैं

    आसीन …

    तब से

    होती जा रही वह

    विकसित

    विलसित

    विहसित

    अन्तहीन

    अनन्त काल के लिए

    और...

    वैसे आपका शैत्य

    अगम्य... अकथ्य!

    यह पूर्ण सत्य है

    तथ्य है

    किसविध

    शब्दों से कर सकूँ ?

    अकथ्य का कथन

    मथन

    क्योंकि

    शीतलधाम / ललाम

    शीतांशु

    सुधा का आकर भी

    तरुण अरुण की किरणों से

    तप-तप कर

    सुधा विहीन  

    होता हुआ दीन

    शीतोपचारार्थ

    अमा औ प्रतिपदा की

    घनी निशा में आकर

    आपके तापहारक

    शान्ति प्रदायक

    पाद प्रान्त में

    शांत छाँव में

    पड़ा रहता है...

    अन्यथा

    उन दिनों

    नभ-मण्डल में

    वह दिखता क्यों नहीं ?

    हे अविनश्वर!

    सघन ज्ञान के

    ईश्वर!


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