तम टला / चला
उडुदल हो चली
प्राची अरुणिमा,
चला
मंद मंद सगंध पवन
पवन की इच्छा है
अच्छा होगा!
होगा स्वच्छ मम जीवन भी
एक बार सहर्ष
वीर चरण स्पर्श
कर लूँ! अंतिम दर्श
न जाने अनागत जीवन!
क्या विश्वास ?
आया न आया श्वास
लता, लता के चूल पर
फुले फूल दल
फूले न समाते
स्वयं वीर चरणों में
करते समर्पण
स्मित-सुमन!
सन्मति के पद-पयोज पर
पयोज-पराग-लोलुपी
भव्य अलिगण
खुल खिल गुन गुन गुंजार
नाच नाचते
मन ही मन
एक अपूर्व आस्था !
मानो कहते
हम अमर बनेंगे / नहीं मरेंगे
जो किया सुधा-सेवन
अपूर्व संवेदन
अनिमेष निरखती
जो धरती
युगवीर को / धीर को / गुणगंभीर को
धन्यतमा मानती
स्वयं को
तृण बिन्दुओं के मिष से
दृग बिन्दुओं से
इंदु समान महावीर के
कर पाद-प्रक्षालन !
पावा उद्यान
आरूढ़ हो ध्यान यान
किया वर्द्धमान ने
निज धाम की ओर
महाप्रयाण !
हे वीर!
हो स्वीकार
मम नमस्कार
बने साकार
जो उठते बार-बार विचार
मम मानस तल पर !