हे! जितकाम
ललाम
आपने ऐसा
कौन सा किया है काम
की
काम का तमाम काम
हो बेकाम
आगामी सीमातीत काल तक
अनुभव करता रहेगा
विराम का
विदित होता है कि
युक्ति से काम लिया है आपने
शक्ति से नहीं
एक पंथ दो काज!...
इस सूक्ति का निर्माण किया है
यथार्थ में
आपने
चिरकालीन चंचल मन की सत्ता
को
जो है
पर से प्रभावित चेतना का ही
एक विकृत परिणाम
दुखधाम
और मनोज का
अधिकरण
उद्गम स्थान
अधिष्ठान
हे आप्त!
समाप्त किया है...!
आपकी दृष्टि
मूल पर रही
चूल पर नहीं
कारण के नाश में
कार्य का
विकास / विलास
संभव नहीं / असम्भव!
कारण के सहवास में
कार्य का
वह विनाश भी
असंभव!...
यह व्याप्ति है
औ आपका न्याय-सिद्धान्त ।
हे शंभव!
इसलिए आपका संदेश है।
आदेश है
कि
दूर रहो...
हे भद्रभव्यो!... ।
मन से
मनोज से
मनोज के बाण
सुमन से...
फिर बनो
अमन...!