हे अपरिमेय !
अजेय सत्ता !
इस
नादान असुमान को
ऐसी शक्ति प्रदान कर दो
इस में
ज्ञान-विज्ञान
प्रमाण भर दो
जागृत प्राण कर दो
लोकालोक
दिव्यालोक
विगतागत का
संभावित का
सिंहावलोकन कर सकें
युगपत्
युगों - युगों तक
कण-कण के
परिचय का
अणु-अणु के
अतिशय का
अनुपान कर सकूँ जी भर !
अन्यथा इसमें
ऐसा मान स्वाभिमान
आविर्माण कर दो
जिससे वह
किसी भी काल में
किसी भी हाल में
तन से, मन से
और वचन से
पर का अनुचर
नहीं बने
निज का सहचर
सही बने, अमर बने।
आगामी अनन्त काल तक
निजी मान के आस्वादन में
रहे सने ! मोद घने!
ओ! अपरिमेय...
अजेय सत्ता !