जैसे जैसे..
सहज रूप से
विनीत ज्ञान का
विकास होता है
वैसे वैसे
मूल रूप से
मानापमान का
विनाश होता है
स्वाभिमान के
उल्लास विलास में
मृदुल .....मार्दव
मॅजुल हास में
विनय गुण का
अनुनय करता
अवनत विनयी
ज्ञान-दास होता है
परम-सत्ता का
परम उदास होता है
समर्पित होता है
सब इतिहास...!
इति .... हास होता है
भीगा भावं
प्रतिभास होता है
समुचित है वह
पल्लव, पत्रों, फूल-फलों के
विपुल दलों से, लदा हुआ है
धरापाद् में, धरा माथ वह
महक सूँघता
अवनत पादप
आतप हारक
आप...!