हे आकाश ! काश !... नहीं देता तू इस लघुतम सत्ता को अपने में अवकाश!... अपने पास!! किस विध सम्भव था ? चिदाकाश का अप्रत्याशित सौम्य-सुगंधित मृदुतम विलास परम विकास!... रूप रसातीत स्फीत प्रतीत परम प्रकाश ! हे महदावास! हे आकाश !