चपला हरिणी दृष्टि
अबला हठीली
बाहर सरला तरला
भीतर गरला गठीली
ऊपर सौम्य छबीली .....
सुन्दर…
कुटिल कुरूप कटीली
अन्दर...!
पर! आज पूर्ण परिवर्तन
प्रतिलोम चाल चलती
यह एक बहाना है
चरण रज सर पर चढ़ाती
मौन कह रही
आज हुआ भला
जीवन को अर्थ मिला
जो कुछ था व्यर्थ, टला
व्यष्टि से दृष्टि हटी
समष्टि का पान करती
गुण-गान करती
करती सक्रिय चरण की पूजन
क्रियाहीन को क्रिया मिली
दृष्टि को मिली
चरण-शरणा
निरावरणा
निराभरणा ।