पृथुल नभ-मण्डल में
अकाल-विप्लव-धर्मी
सघन, श्यामल
बादल-दल
पिघल-पिघल कर
उज्ज्वल शीतल
धवलिम जल में
बदल गया है ।
इसे निरख कर
धरती दिल
हिल गया है,
मन में विचार ।
भविष्य का विषय
गहल-भाव में ढला
भला-बुरा अज्ञात
यह युग
मुझे तिरस्कृत करेगा
पद दलित करेगा
दल-दल आ गया है