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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • बनना चाहता यदि शिवांगना पति

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    बनना चाहता यदि शिवांगना पति.jpg

     

    कर कषाय शमन, पंच इन्द्रिय दमन,

    नित निजमें रमण, कर स्वको ही नमन ।

    जिया! फिर भव में, नहीं पुनरागमन,

    ओ! क्या बताऊं! बस चमन ही चमन ।।

    समता - सुधापी, तज मिथ्या परिणति,

    बनना चाहता यदि शिवांगना - पति । ।१ ।।

     

    केवल पटादिक वह मूढ़ छोड़ता,

    सुधी कषाय - घट, को झटिति तोडता ।।

    गिरि - तीर्थ करता वह जिन दर्शनार्थ,

    जिनागम जो मुनि पढा नहीं यथार्थ ।।

    मद ममतादि तज बन तू निसंग यति,

    बनना चाहता यदि शिवांगना - पति ।।२।।

     

    सुख दायिनी है यदि समकित - मणिका,

    दुख दायिनी है वह माया - गणिका ।।

    पीता न यदि तू निजानुभूति - सुधा,

    स्वाध्याय, संयम, तप कर्म भी मुधा ।।

    दिनरैन रख तू केवल निज में रति,

    बनना चाहता यदि शिवांगना पति ।।३।।

     

    उपादान सदृश होता सदा कार्य,

    इस विधि आचार्य बताते अयि! आर्य

    ‘विद्या’ सुनिर्मल, - निजातम अत:! भज,

    परम समाधि में स्थित हो कषाय तज ।।

    संयम भावना बढ़ा दिनं प्रति अति,

    बनना चाहता यदि शिवांगना पति ।।४।।

     

    - महाकवि आचार्य विद्यासागर


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