प्रवीण जैन Posted July 2, 2018 Report Share Posted July 2, 2018 वंदन है उस तपस्वी को जो आत्मसाधना के साथ भारत और भारतीयता के लिए निरंतर चिंतनशील हैं. जैन धर्म विश्व के प्राचीन धर्मों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है l जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को वैदिक परंपरा में अष्टम् अवतार माना गया है l भगवान ऋषभदेव की परंपरा में भगवान महावीर चौबीसवें तीर्थंकर हुए है जिन्होंने जैन धर्म-दर्शन को मजबूत आधार प्रदान किया l उनके दिव्य उपदेशों का प्रभाव पूरे भारतीय समाज पर दिखाई देता हैl महावीर ने अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत जैसे महान् मानवीय मूल्यों पर आधारित समाज संरचना का सन्देश दिया, साथ ही व्यक्ति की मुक्ति के लिए आत्मानुभूति और कठिन तपश्चर्या का मार्ग बताया l भगवान् महावीर द्वारा निर्दिष्ट मार्ग इतना निर्विवाद और अनुकरणीय है कि विगत 2600 वर्षों से लाखों साधु-मुनियों ने उस पथ पर चलकर समाज का और स्वयं का कल्याण किया l यह भारत भूमि का परम सौभाग्य है कि आज के इस भौतिकतावादी युग में भी महावीर के पथ के अनुयायी अपनी कठिन तपश्चर्या से नई पीढ़ी को आध्यात्मिक सन्देश दे रहे हैं l आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज इस महान आध्यात्मिक परंपरा के उत्कृष्ट साधु हैं. जितना सुना है, जाना है और उनके विषय में पढ़ा है ,उसका निष्कर्ष यही निकला कि इस युग में ऐसे साधू और साधुता के दर्शन अतिदुर्लभ हैं | इस युग में जन्मे प्रत्येक व्यक्ति का यह सौभाग्य है कि हम इस युग में जन्में हैं, जब उनके दर्शन प्राप्त हो सकते हैं | उनके विचार “भारत के विकास और संस्कारयुक्त शिक्षा” को महत्त्व देते हैं | भारत और भारतीयता के स्वप्न को साकार करवाने की अभिलाषा रखने वाले यह संत , आत्मकल्याण के साथ साथ बालिकाओं की शिक्षा, युवाओं के प्रशिक्षण,गौ पालन, बुनियादी रोज़गार हेतु हथकरघा, अहिंसा मूलक जैविक कृषि, समन्वित चिकित्सा व्यवस्था जैसे समाजोपयोगी कार्यक्रमों की प्रेरणा भी देते हैं l राष्ट्रोत्थान उनके चिंतन का प्रमुख बिंदु है l इसलिए आचार्यश्री स्वदेशी उद्योग, भारतीय भाषाओं के संरक्षण और स्वदेशी संस्कारों पर अपने प्रवचनों में निरंतर सन्देश देते हैं l हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं के भविष्य को लेकर उनकी चिंता हम सभी के समग्र प्रयासों से दूर होगी, ऐसी मैं आशा करता हूँ| आचार्य विद्यासागर जी को मुनि दीक्षा लिए 50 वर्ष हो रहे हैं l आचार्यश्री अपने सैकड़ों आज्ञानुवर्ती साधू-मुनियों,आर्यिकाओं और आस्थावान श्रावकों के माध्यम से निरंतर आत्मसाधना और लोकमंगल के महायज्ञ में सन्नद्ध हैं l अतः अध्यात्म और संस्कृति प्रेमी समूचा भारत इस वर्ष को “संयम स्वर्ण महोत्सव” के रूप में मना रहा है l आज विश्व को महावीर के अहिंसा–अपरिग्रह-अनेकांत आधारित जीवन दर्शन की आश्यकता है l आचार्य विद्यासागर महावीर के जीवन दर्शन के साक्षात प्रतिरूप हैं और इसलिए हम सबके लिए अनुकरणीय हैं l पुनः मैं श्रमण परंपरा के महान तपस्वी निर्ग्रन्थ साधक आचार्य १०८ विद्यासागर जी के चरणों में अपनी प्रणामांजलि निवेदित करता हूँ l 1 Link to comment Share on other sites More sharing options...
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