Anu Sethi Posted February 24 Report Share Posted February 24 भक्तो के राखनहार *आचार्य श्री विद्द्यासागर जी* *मेरे साथ घटित एक अविश्मरणीय घटना* *गुरु के आशीर्वाद मे क्या अद्द्भुत व् अनुपम शक्ति है* *"नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु ब्रह्मांड के देवता"* बहुत दिनों तक प्रयास रत रहने के बाद एक दिन *अचार्य श्री 108 विद्द्यासागर मे महामुनिराज के दर्शन हेतु जाना तय हुआ*। मै ओर मेरी तीनो बेटीयो के साथ गुवाहाटी से जबलपुर व आगे की यात्रा कार से करने का मन बना कर आचार्य श्री के दर्शन हेतु रवाना हुए। यह बात सन 2009 की है, जब हमलोग कार से जा रहे तो, मौसम बारिस का था कुछ दूर जाने पर बारिस बहुत तेज व कड़ कड़ाती ठंड भी पड़ने लगी, ड्राइवर भी उस रास्ते से नया व् अनभिज्ञ था, हम लोग रास्ता भटक गये व लगा की हम लोग बिहड़ वन मे से गुजर रहे है, मन मे बहुत डर लग रहा था, समय भी रात्रि के करीब 12 बज रहे थे जिससे डर और ज्यादा डरावना बन गया था। आचार्य श्री के दर्शन के लिए निकले थे अत: डर व श्रद्धा से मन हि मन आचार्य श्री के जाप करने लगे तभी अचानक एक सफ़ेद ड्रेस पहने हुए, छाता लिए हुए एक व्यक्ति साइकिल से आता दिखाई दिया, डर भी लग रहा था फिर भी साइकिल वाले के पास गाडी रोक कर पूछा की आचार्य श्री कहाँ विराजमान है, व्यक्ति ने जबाब दिया की इस साइड से चले जाओ अचार्य श्री अमरकंटक मे विराजमान है, इतना कहकर वो आगे निकल गया। जब मैने पीछे मुड़कर देखा तो वहा कोई नही दिखाई दिया, व्यक्ति अदृश्य हो गया। इस भयानक व डरावानी परिस्थिति मे भी हमे मार्ग दिखा कर ओझल हो जाना यह एक गुरु का, आचार्य श्री का हि चमत्कार है, भक्तो पर कोई आंच भी नही आने देते। *यह क्या था, चमत्कार या अतिशय मै आजतक नही समझ पाई।* गुरु की लीला अपरम्पार है। जय हो गुरुदेव आचार्य श्री विद्द्यासागर जी महाराज की जय। *एक स्मरण संक्षिप्त मे* आचार्य श्री के संघ मे मुनी क्रिया विशेष कर प्रतिक्रमण बहुत हि अनुसाशित होता है, सब अपने अपने स्थान पर एक् साथ बैठ कर हि प्रतिक्रमण करते है। एक बार की बात है की आचार्य श्री ने अपने संघस्थ एक मुनी को निर्देश दिया की आज तुम प्रतिक्रमण अलग अपने हि रूम मे करना, गुरु आज्ञा शिरोधार्य से बिना किसी प्रश्न के वे अपना प्रतिक्रमण सामूहिक न करके अलग से अलग स्थान पर प्रतिक्रमण किया। हमेशा की तरह जहाँ सामूहिक प्रतिक्रमण होना तय था वहाँ उन मुनी के अलावा सभी लोग साथ साथ अपने अपने स्थान पर बैठकर प्रतिक्रमण करने लगे। प्रतिक्रमण के दौरान उसी कक्ष की क्षत का एक भाग उसी स्थान पर गिरा जहाँ वे मुनी रोजाना प्रतिक्रमण करते थे। गुरु के भविष्य ज्ञाता ज्ञान व आशीर्वाद से उन मुनी को शारीरिक कष्ट होने से बचालिया गया। अद्द्भुत संयोग का समावेश हो या रिद्धि के धारी गुरु का आशीर्वाद या चमत्कार। नमन है ऐसे अनमोल गुरु और, बारम्बार नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु। अनिता जैन रेहाबारी गुवाहाटी 🙏🏿🙏🏽🙏🏿 Link to comment Share on other sites More sharing options...
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