स्वणोंत्सव (वर्ष) दिवस ये आया, जन-जन में आनंद छाया ।
स्वर्णिम युग के युग दृष्टा, स्वर्णिम इतिहास रचाया।
श्री आदि प्रभु का प्रशासन, श्री वीर प्रभु का शासन,
शोभित तुमसे हे गुरुवर! श्री ज्ञान गुरु का ये आसन।
हृदयासन आ विराजो, पूजन का थाल सजाया,
स्वर्णिम युग के युग दृष्टा, स्वर्णिम इतिहास रचाया।
स्वणोंत्सव दिवस ये आया, जन-जन में आनंद छाया ।
ॐ हूं आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्र: अत्र अवतर -अवतर संवोंषट्र आहवाननं जय हो, जय हो, जय हो !
ॐ हूं आचार्यं श्री विद्यासागर मुनीन्द्र: अत्र तिष्ठ-तिष्ठ ठः ठः स्थापज जय हो, जय हो, जय हो !
ॐ हूं आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्र: अत्र मम सन्जिहितो भव-भव वषट् सन्निधि करणं जय हो, जय हो, जय हो !
सरिता तट की वो माटी, पद दलिता पतिता माटी,
जीवन में उसके आयी, बस गम ही गम की घाटी।
जल अर्पण महा मनीषी, माटी को गागर बनाया।
स्वर्णिम युग के युग दृष्टा, स्वर्णिम इतिहास रचाया।
ॐ हूं आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्रेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा ।
ना शीतल मलय का चंदन, हिम नीर ना कश्मीर चंदन,
शीतल गुरु तेरे दो नैन, हरते भव-भव का क्रन्दन।
शीतल भूपर शीतल ले, फिर शीतल धाम बनाया,
स्वर्णिम युग के युग दृष्टा, स्वर्णिम इतिहास रचाया।
ॐ हूं आचार्य श्री विद्यासागय मुनीन्द्रेभ्यो, संसार ताप विनाशनाय चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा ।
क्षण भंगुर जग ये सारा, शाश्वत सिद्धोदय प्यारा,
अशरीरी सिद्ध प्रभु को, अक्षय आदर्श बनाया।
मुनि, क्षुल्लक, आर्यिका दीक्षा, किया हम सबका उद्धारा,
स्वर्णिम युग के युग दृष्टा, स्वर्णिम इतिहास रचाया।
ऊं हूं आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्रेभ्यो अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।
चंपा और जूही चमेली, अरूं पारिजात की कलियाँ।
फूलों से भी कोमल मन, भटकाता भव की गलियाँ।
संयमदाता ! उपकारी ! संयम दे जीवन सजाया,
स्वर्णिम युग के युग दृष्टा, स्वर्णिम इतिहास रचाया।
ऊं हूं आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्रेभ्यो कामबाण विध्वशनाय पुष्पम्र निर्वपामीति स्वाहा ।
षट्ररस व्यंजन के त्यागी, निज आतम के अनुरागी,
छत्तीसगढ़ आन पधारे, छत्तीस मूल गुण धारी।
श्री चन्द्रगिरी में पावन प्रभु चन्दा धाम बनाया।
स्वर्णिम युग के युग दृष्टा, स्वर्णिम इतिहास रचाया ||
ऊं हूं आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्रेभ्यो क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम्र निर्वपामीति स्वाहा ।
संधान किये अलबेले, खोजे इतिहास अनोखे।
हथकरघा, हिन्दी शिक्षा, ये आदि ब्रह्म से होते ।
श्रद्धा का दीप जलाया, भारत को फिर लौटाया।
स्वर्णिम युग के युग दृष्टा, स्वर्णिम इतिहास रचाया ||
ऊं हूं आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्रेभ्यो मोहान्धकर विनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा ।
'या श्री सा गी' है गहना, गुरु वीरसेन का कहना,
बूचड़खाने क्यों जाते, गौमाता उसके ललना।
दयोदय शांतिधारा करुणा का भाव जगाया,
स्वर्णिम युग के युग दृष्टा, स्वर्णिम इतिहास रचाया।
ऊं हूं आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्रेभ्यो अष्टकर्म दहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा ।
गुरु-भक्ति का फल पाया, गुरूकुल आदर्श बनाया,
हर मनु-मानव बन जाये, प्रतिभास्थली ने गाया।
प्रति भारत प्रतिभा रत हो, गुरु ज्ञान का सूत्र बताया,
स्वर्णिम युग के युग दृष्टा, स्वर्णिम इतिहास रचाया।
ऊं हूं आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्रेभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा ।
नन्हा सा अर्घ रहा ये और अपार विद्यासागर,
आराधन रहा अधूरा, आराध्य मेरे हे गुरुवर ! ।
नव मंदिर बैठे बाबा, जिन महिमा यश फैलाया,
स्वर्णिम युग के युग दृष्टा, स्वर्णिम इतिहास रचाया।
ऊं हूं आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्रेभ्यो अनर्धपद प्राप्तये अर्ध्य निर्वपामीति स्वाहा ।
अंचलिका
चंदा सूरज दीप से, करे आरती आज।
स्वर्णिम संयम वर्ष के, स्वर्णिम साल पञ्चास।।
जयमाला
स्वर्णिम युग के हे सन्त श्रेष्ठ! चरणों मे शीश झुकाते हैं।
गुरू के यश की गौरव गाथा, हम जयमाला में गाते हैं।
जय हो....जय हो....
जय हो....जय हो....
उन्नीस सो छयालीस दश अक्टूबर, शरद पूर्णिमा प्यारी थी,
मलप्पा जी श्रीमती के गृह, बाजी चऊँ ओर बधाई थी।
चंदा सा सुंदर शिशु देख, सब फूले नहीं समाते है,
गुरू के यश की गौरव गाथा, हम जयमाला में गाते हैं ।।१।।
बचपन के रूप सुहाने, पीलू, तोता, गिनी नाम रखा
विद्याधर नाम बड़ा प्यारा, जिसमें जीवन का सार भरा
इक खेल अनोखा खेला, जिससे भव बंधन मिट जाते हैं
गुरु के यश की गौरव गाथा, हम जयमाला में गाते है ।।२।।
गुरू देशभूषण का साया था, गुरू ज्ञान की छाया सघन रही,
विद्याधर से विद्यासागर, गुरुवर की गाथा अमर रही।
गुरु ज्ञान से गुरु पद पाकर के, गुरु ज्ञान की महिमा गाते हैं
गुरू के यश की गौरव गाथा, हम जयमाला में गाते हैं ।।३।।
मुनि, आर्या दीक्षा देकर के संयम की अलख जगायी है,
प्रतिमा-विज्ञान बोधि देकर, श्रावक की रीति सिखायी है।
मर्यादा पुरूषोतम जैसे,मर्यादा पाठ पढ़ाते हैं,
गुरू के यश की गौरव गाथा, हम जयमाला में गाते हैं ।।४।।
सर्वोदय, सिद्धोदय हो, या भाग्योदय भाग्य जगाते हैं,
दयोदय उदय दया का हो, पुण्योदय पुण्य बढ़ाते हैं
कुण्डलपुर के नये मंदिर में, बड़े बाबा लगते प्यारे हैं
गुरू के यश की गौरव गाथा, हम जयमाला में गाते हैं ।।५।।
प्रतिभा स्थली के प्राण गुरु, शांतिधारा, शांतिदाता,
श्री रामटेक के शांतिप्रभु, श्री चन्द्रगिरी चन्दाबाबा।
कलयुग बन गया ये सतयुग है पग जहाँ तेरे पड़ जाते हैं,
गुरू के यश की गौरव गाथा, हम जयमाला में गाते हैं ।।६।।
इस दुखमा पंचम काल में भी महावीर सी चर्या पाली है,
हे जिनवाणी के तप: पूत! तुमसे भू गौरवशाली है।
इस हृदय देश में उठे भाव, बस ध्यान तुम्हारा ध्याते हैं,
गुरू के यश की गौरव गाथा, हम जयमाला में गाते हैं ।।७।।
इन साल पचास में गुरुवर ने, संयम का अमृत बाँटा है
गुरुवर के चरणों में हमने, भव-भव का बंधन काटा है।
गुरु बने तीर्थकर/सिद्धप्रभु, हम यही भावना भाते हैं
गुरू के यश की गौरव गाथा, हम जयमाला में गाते हैं ।।८।।
ॐ हूं आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्रेभ्यो जयमाला पूर्णार्ध्य पूणध्यि निर्वपामीति स्वाहा ।
है अपूर्ण आराधना, गुरु आराध्य महान।
स्वर्णिम संयम दिवस पर, शत्-शत् बार प्रणाम।
"इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलि क्षिपेत्"