संयम स्वर्ण महोत्सव आरती
ले के कर में कंचन थाल, जिसमे दीप पचास प्रजाल,
संयम स्वर्ण महोत्सव मनायें सब समाज |
धन्य गुरुश्री विद्यासागर, संयम साधना के रत्नाकर,
किया धर्म का प्रचार, गूंजे चहूँ दिश जय-जयकार ||
संयम स्वर्ण महोत्सव.............................
ज्ञान गुरु के परम शिष्य हो, उनके जैसे जग में शायद कोई हो
उनसे लीनी दीक्षा धार, ज्ञान गुरु की कृपा अपार|
संयम स्वर्ण महोत्सव.............................
मुखड़े पें सोहें तेरे, तपस्या की ज्योति
नयना लुटाये हर पल ममता के मोती
शत्रु-मित्र है एक सामान, नहीं राग-द्वेष का नाम
संयम स्वर्ण महोत्सव.............................
मिश्री सी वाणी तेरी अमृत घोले
टन को मिटाकर, मन के हिये पट खोले
तेरी महिमा अम्परम्पार, गागर में है सागर सार
संयम स्वर्ण महोत्सव.............................
आचार्य श्री जी मंगलकारी
जन-जन की तुमने, जिंदगी सवारी
तारे दे व्रत, नियम चार, किया भविजन का उद्धार
संयम स्वर्ण महोत्सव.............................
कैसे गुरुवार की महिमा गायें
सूरज को कैसे दीप दिखायें
आजा जो तेरे दरबार हो गया उनका बेडापार
संयम स्वर्ण महोत्सव.............................
आप जियो गुरु साल हजारों
इक - इक साल के दिन हो हजारों
हो हजारों साल पचास, संयम स्वर्ण महित्सव साल
संयम स्वर्ण महोत्सव.............................
जब तक नभ में चाँद - सितारे
युग-युग में गूंजे यशगान तुम्हारें
है यह प्यासे मन की चाह, गुरुवार दिखलाये सद्द राह
संयम स्वर्ण महोत्सव.............................