दैहिक सुख सुविधा देती है जन्मदायी माँ...
आत्मिक शाश्वत सुखदाता है गुरु महात्मा!
जिनकी ऊँचाई के आगे बोना है आसमाँ...
ऐसे विराट शुरु की ज्ञान गोद में,
पलता है जीवन जिस शिष्य का,
निश्छल वह कह देता सब दोष।
अति शीघ्र बन जाता गुणकोष...निर्दोषः
धन्य हो ज्ञानदायिनी माँ...
भवतारिणी माँ!
“गुरुवर माँ का रूप सलौना, आत्मिक सुख को देता है।
तीव्र कर्मवश दोष हुए तो, शिष्य सभी कह देता है।
माँ की गोद में बालक जैसे, निशंक लेटा करता है।
शिष्य गुरु चरणों में वैसे, सदा जागता रहता है।।''