जैसे पराये लोगों के आलीशान गृह में,
विशेष सुविधाओं के साथ रहने पर भी,
वह सुख नहीं होता
जो निजी छोटी सी झोपड़ी में,
सामान्य सुविधाओं के साथ रहने पर होता है
वैसे मुझे भी दुनिया के लोग
कितना ही चाहें, वात्सल्य दें,
उसमें वह सुख नहीं होता
जो आपश्री की मात्र एक मुस्कान भरी
आत्मीय झलक को पाकर होता है।
हे मेरे परम समीप...सदा मुझमें निवास करना।
मुझे सदा अपना समझकर आत्मीय वात्सल्य देते रहना।
"आदिनाथ से वीरप्रभु तक, बही ज्ञान की धारा है।
कुंद-कुंद धरसेन गणी ने , कई भव्यों को तारा हैं।।
शांति वीर शिव ज्ञानसिंधु से, विद्यासागर आप हुए।
स्वात्म असंख्य प्रदेशों में मम, श्रद्धा से गुरू व्याप्त हुए।।"