आपने ही मेरे सोये भाग्य को जगाया,
पर से दृष्टि हटाकर आत्मा में दृष्टि को लगाया,
लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है?
जितना- जितना विशुद्ध भाव बढ़ता जा रहा है,
उतना-उतना कर्मों का सैलाब उदय में आता जा रहा है।
जब से दृष्टि निज में जागी, कर्म भी जाग गये हैं।
अब तो आप ही कर्म को सदा के लिए सुला सकते हो,
और मुझे अपने साथ सिद्धालय में ले जा सकते हो।
हे भावी सिद्धालयवासी! हे मेरे हृदयालयवासी!
"जिसकी सौम्यछवि दर्शन कर, आतम दर्शन होता हैं।
सदियों से जो भाग्य सो रहा, तत्क्षण जागृत होता है।।
पशु भी परमेश्वर पथ पाता, मानव की क्या बात कहे।
भाव सहित जो गुरु को वंदे, सिद्धदशा तक साथ रहे।।”