आप सब कुछ देते ही देते हो,
बदले में ना कुछ कहते हो ना कुछ लेते हो,
आप सहज शिवपथ दिखला देते हो,
नि:स्वार्थ ज्ञान देकर,
आत्मिक सुख से भरपूर कर देते हो!
आप सचमुच अनुपम दाता हो!
शिष्य की सच्ची माता हो!
दृष्टा हो, उसके ज्ञाता हो!
“पात्र शिष्य को गुरु अपना पद, देने की इच्छा करते।
ज्ञान भला फिर क्यों ना देंगे, शिष्यों के दुःख को हरते।।
जैसे गौ निज शिशु के खातिर, प्राण त्याग सकती है।
तो फिर दूध क्यों नहीं देगी, गुरु महिमा यह कहती है।”