हृदय की धड़कन को तो मैं सम्भाल लूँगा,
बंद होने से पहले उपचार करा लूँगा।
लेकिन...
मेरी स्वसंवेदन की धड़कन को,
आप ही सम्भालियेगा।
ये धड़कन कभी बंद ना हो,
अर्पणता का भाव कभी मंद ना हो।
“गुरु छवि का सम्मोहन अनुपम, पर से बेसुध कर देता ।
शुद्धातम का भान कराता, अपनी सुध-बुध दे देता।।
गुरु से शुरू हुआ हैं शिवपथ, गुरु की महिमा न्यारी हैं।
विधासागर गुरु को वंदूँ, करूणाकर उपकारी हैं।।”