मैंने जब-जब आपका समागम किया,
समीप से दर्शन किया,
प्रवचनों को सुना, अंतर में गुना,
मेरे कर्मों में परिवर्तन आया।
लेकिन...अब तो मुझे,
कर्मधारा को ही बदलना है।
ज्ञानधारा में ही जीना है।
इसके लिए मैं क्या करूं?
“अर्हत् जिन से जनक गुरु के, जिनवाणी सी मैय्या है।
गणधर जैसे भैय्या जिनके, गुरुवर एक खिवैया है।।
महंत जन से परिचय जिनका, उनकी महिमा क्या कहना।
ऐसे गुरु के चरण कमल में, शाश्वत काल मुझे रहना।।”