रत्नों के धनी तो बहुत हैं संसार में,
पर रत्नत्रय के धनी आप जैसे विरले हैं।
वित्त के रागी तो बहुत हैं संसार में,
पर आपसे वीतरागी गुरु विरले हैं।
ऐसे गुरु की भक्ति बिन, प्रभु भक्ति कहाँ?
और प्रभु भक्ति बिन शाश्वत मुक्ति कहाँ?
जब तक मुक्ति न हो,
तब तक गुरू भक्ति करता रहूँ,
विद्यासिंधु में डुबकी लगाता रहूँ।
“गुरुभक्ति सम्यक्त्व रूप है, इसकी महिमा अनुपम है।
गुरुपदेश से प्रगट ज्ञान ही, सम्यक्ज्ञान सु अनुभव है।।
श्री गुरुवर का अनुकरण ही, सम्यक् चारित्र कहलाता।
इस बिन मोक्ष नहीं हो सकता, भक्त जनों का मन गाता।।''