यदि कीचड़ से गंदे पैरों को धोने के लिए
नीचे झुकना ही पड़ता है तो
कर्मों से मैली आत्मा को धोने के लिए
आपके चरणों में क्यों न झुकूँ?
यदि किसी से बदला लेने के लिए
उसके दोषों का सुमिरन करना ही पड़ता है तो
मैं अपनी सिद्धदशा को पाने के लिए
आपही का सुमिरन क्यों न करूँ?
"गुरुवर का जब विहार होता, चमत्कार हो जाता हैं।
जाति-पाति का भेद मिटाकर, जनमानस खो जाता है।।
श्वास रहेगी जब तक तन में, गुरू सुमिरन कर सुख पाऊँ।
गुरु का भगवत रूप देखकर, निज स्वरुप को पा जाऊँ।।"