आपके सहज वीतरागी चित्र को देखकर,
बालक भी प्रसन्न हो जाता है।
रोते-रोते शांत हो जाता है।
और आपके पवित्र चित्त की प्रवृत्ति को देखकर,
वृद्ध भी मुदित हो जाता है।
उसका भी ज्ञान उदित हो जाता है।
आखिर आप ज्ञान दिवाकर हो ना...
शीतल शांत सुधाकर हो ना…
तभी आबाल वृद्ध कह उठता है कि,
जिनकी मूरत इतनी सुंदर वो कितना सुंदर होगा।
“लगता है आबाल वृद्ध को, विधा नाम अति प्यारा।
ज्ञान अर्थ दर्शाने वाला, पूर्ण ज्योति सा उजियारा।।
लघु बालक भी चित्र देखकर, गुरुवर को पहचान रहे।
संत शिरोमणि विधासागर, तव पद में मम माथ रहे।।”