जब शिष्य आपका स्नेह पाता है,
तब आपका ही हो जाता है।
जब वह प्रभु भक्ति में रम जाता है,
तब जिन प्रभु का हो जाता है।
पर जब आपके कृपाप्रसाद से,
स्वानुभव में रम जाता है,
तब वह निजप्रभु मय हो जाता है।
“जीवन के कोरे कागज पर, यदि गुरु के हस्ताक्षर हो ।
पामर भी फिर पावन बनता, बन जाता परमेशश्वर वो।।
नीर-क्षीर में मिलकर के ज्यों, मूल्यवान बन जाता है।
गुरु चरणों में अज्ञानी त्यों, ज्ञानवान बन जाता है।।”