में पामर हूँ फिर भी हे परम!
आपने मुझे सहारा दिया।
मैं अधम हूँ फिर भी हे पावन !
आपने मुझे पावन किया।
मैं अबोध हूँ फिर भी हे ज्ञानवान !
आपने मुझे बोध दिया।
में अनेक दोषों का कोष हूँ फिर भी हे गुणकोष !
आपने मुझे चरणों में स्थान दिया।
“ज्ञानसिंधु गुरुवर को पाकर, विद्याधर धनिधन्य हुए।
विद्याधर सा विनीत शिष्य पा, ज्ञानसिंधु भी धन्य हुए।।
गुरु-शिष्य संबंध अनूठा, लख जिनशासन धन्य हुआ।
विद्या गुरु का संगम पाकर, मम जीवन भी धन्य हुआ।।”