ये कर्म शत्रु मुझे चिरकाल से डरा रहे हैं।
अनंत पर्यायें मैंने बदल दी फिर भी,
ये दुष्टाष्ठ रिपु मुझे सता रहे हैं।
केवल इस भूतल पर आप ही ऐसे महामना हैं,
जिससे ये कर्म डरते हैं।
आप ही के पास कर्मों को,
परिवर्तित करने की क्षमता है।
फिर... मेरे लिए ये विलम्ब क्यों?
मेरे लिए दर्शन तक दुर्लभ क्यों?
“हे शुद्धात्म प्रदेश निवासी, गुरुवर तुमको वंदन हो।
निजात्म प्रेमी ज्ञानी-ध्यानी, गुरुवर का अभिनंदन हो।
हे अनन्य आत्मीय मुनीश्वर, जग का हरते कंदन हो।
विद्यासागर परम कृपालु, पद में जीवन अर्पण हो।।”