पर से विमुख होने का मैं पूरा पुरुषार्थ करूंगा।
पर, स्व के सम्मुख कराने की कृपा आप ही को करनी होगी।
बुरे कार्यों से हटने का मैं पूरा पुरुषार्थ करूंगा।
पर, सत्कार्यों में लगाने की कृपा आप ही को करनी होगी।
मैंने तो अपना सर्वस्व आप ही को समर्पित कर दिया,
लेकिन मुझे स्वीकारने की कृपा आप ही को करनी होगी।
“गुरु मंत्र दो अक्षर का है, सब मंत्रों का राजा है।
विध्न विनाशक संकटहारक, ऋद्धि-सिद्धि का दाता है।।
रहकर दूर गुरु से कोई, कहीं नहीं कुछ सुख पाते।
गुरु मंत्र के ही प्रसाद से , निज अनुभव कर शिव जाते।।”